संस्कृति के बिना राष्ट्र की उन्नति सम्भव नही हैं – स्वामी गोपालानंद सरस्वती जी महाराज

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विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव* के 62 वें दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को ग्वाल सन्त गोपालानन्द सरस्वती महाराज ने महाराणा प्रताप की जन्म जयंती के शुभावसर पर बताया कि मेवाड़ अपने आप में एक प्रेरणा है,जहां शोर्य,भक्ति एवं समर्पण तीनों प्रगट हुए है । शोर्य के रूप में महाराणा प्रताप, भक्ति के रूप में मां मीरा बाई एवं समर्पण के रूप में भामाशाह,भीलू राणा,गाडोलिया लुहार आदि का समर्पण उस भूमि में रहा है । ये सब होने के पीछे एक महापुरुष का प्रभाव रहा है,एक परंपरा का प्रभाव है,जिन परंपराओं को हम रूढ़ीवादी मानकर खारिज करते है,वस्तुत वही परंपरा व्यक्ति को महान बनाती है और जब परंपराओं का नाश होता है तो उसके साथ साथ विकास की जगह विनाश प्रारम्भ हो जाता है ।जिन परंपराओं से हमारी गौरवशाली विकास की परम्परा बनती है उन्हे हम जंजीरे समझकर तोड़ते है तो समझ लीजिए कि हम विकास को हम बहुत पीछे छोड़ते है,क्योंकि *विकास का और परंपराओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है* लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में डूबकर हम लोगो ने कुछ परिभाषा गढ़ ली और उन परिभाषाओं का साथ देते देते हम परंपराओं को बहुत पीछे छोड़ गए है।और आज हम हमारे उन महापुरुषों को नमन करते है,जिन्होंने गोमाता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।

स्वामीजी ने बताया कि सिर्फ नीति पूर्वक राज्य चलाने से बात नहीं बनेगी नीति के साथ धर्म को भी रखना पड़ेगा । दोनो का अपना अपना महातम्य है,इसलिए राज बिना धर्म के नही चल सकता ।यह भारत का दुर्भाग्य है कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहलाता है। निरपेक्षता का अर्थ है ही नहीं।सभी धर्मो का समान आदर करना है तो धर्म सापेक्ष राज्य कहिए।धर्म सापेक्ष भारत होना चाहिए ।
स्वामीजी ने कहां कि नीतियां लौकिक होती है और धर्म पारलोकिक ।नीतियों से व्यवस्था च्लती है और धर्म से संस्कृति पलती है । और *संस्कृति के पले बिना राष्ट्र की परिकल्पना नहीं की जा सकती* । भारत को होने के लिए भारतीय संस्कृति का होना जरूरी है इसलिए बिना धर्म के कोई कैसे चल सकता है। जिस प्रकार पानी का अपना धर्म होता है, आग का अपना धर्म होता है,सबका अपना अपना धर्म है और जब राष्ट्र का कोई धर्म नही होगा तो फिर राष्ट्र कैसे चलेगा ।

62 वें दिवस की गो कृपा कथा में मेवाड़ की पुण्यधरा से कथा वाचक प्रह्लाद कृष्ण शास्त्री महाराज ने भाग लिया।


62वें दिवस पर चुनरी यात्रा राजस्थान की पिड़ावा तहसील के देवची ग्राम की ओर से*:-
एक वर्षीय गोकृपा कथा के 62 वें दिवस पर राजस्थान के झालावाड़ जिले की पिड़ावा तहसील के देवची ग्राम के पंच पटेल ओंकार लाल, मोती सिंह,जगदीश बैरागी, श्याम बाबू, लखन,दुर्गेश,,विनोद, गोविन्द एवं सज्जन सिंह सहित ग्राम की मातृशक्ति ,युवा एवं प्रबुद्धजन अपने ग्राम की कुशहाली एवं जन कल्याण के लिए सम्पूर्ण ग्राम की ओर से गाजे बाजे के साथ विशाल चुनरी यात्रा ,गो भंडारा एवं छपन्नभोग सामग्री लेकर कामधेनु गो अभयारण्य मालवा परिसर में पधारे और कथा मंच पर पहुंचकर गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर गोमाता का पूजनकर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन, गोपुष्ठि यज्ञ करके यज्ञशाला की परिक्रमा कर उसके बाद सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।

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Author: Dhenu News

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