गाय माता का गोबर सतोगुण की खान है – स्वामी गोपालानंद सरस्वती जी महाराज

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मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन जी यादव द्वारा निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु भारतीय नूतन वर्ष २०८१,चैत्र शुक्ला प्रतिपदा 09 अप्रैल 2024 से घोषित *गो वंश रक्षा वर्ष* के तहत जनपद पंचायत सुसनेर की समीपस्थ ननोरा,श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर स्थित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव* के 60 वें दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को ग्वाल सन्त गोपालानन्द सरस्वती महाराज ने बताया कि *भगवती गोमाता भक्तों के सारे दु:खो को मिटाकर उन्हें सुख देना चाहती है*, इसलिए उन्होने सभी देवताओं को सहजरुप से धीरे धीरे धरती पर आमंत्रित किया है ।

स्वामीजी ने बताया कि निराकार निर्गुण परमात्मा को पाना सबके वश की बात नहीं है । *अगुण सगुण दोही ब्रह्म स्वरूपा* अर्थात जो निर्गुण निराकार है, वही सगुण साकार है, लेकिन निर्गुण को समझ पाना सब के लिए संभव नहीं है । पिछले जन्म में जिसने सगुण को बहुत अच्छे से भज लिया, वह इस बार निर्गुण की उपासना कर रहा है ।उदाहरणार्थ कोई कह दे कि मैंने तो सीधा MBA कर लिया तो यह उसकी गलत फहमी है ,यानि जो इस जन्म में निर्गुण उपासक है,उन्होंने पिछले जन्म में सगुण की उपासना कर ली थी और अबकी बार वे भ्रम में है कि हम तो सगुण को नहीं मानते,हम तो सीधा निर्गुण को मानते है,ये एक भ्रम है क्योंकि निर्गुण को समझने के लिए बड़ी शक्ति चाहिए इसलिए तो भगवती गोमाता ने पग पग पर सगुण अवतारों को उपस्थित कर दिया,पग पग पर सगुण देवताओं की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित कर दिया और हमारे लिए भक्ति को,पूजा को,अनुष्ठान को सहज बना दिया ,जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मां भगवती ने हिमालय में कांगड़ा के पास मां ज्वाला के रूप में हमें प्राप्त हुई है अर्थात न घी है, न तेल है और न बाती है फिर भी मां हमें निरंतर ज्वाला के रूप में दर्शन दे रही है ।
महाराज जी ने त्याग के बारे में बताते हुए कहां कि त्याग के कई प्रकार है, निषिद्ध कर्मो का तो स्वरूप से ही त्याग करना उचित है, जैसे गाली मत दो,झूठ मत बोलो, पाप मत करो, पर स्त्री,पर कन्या पर कुदृष्टि मत डालो,पराए धन को अपना मत समझो ये जो निषिद्ध कर्म है वह सब त्याज्य है ,लेकिन उचित कर्म को त्यागना उचित नहीं है। अगर मोह वश कोई व्यक्ति अंहकार में त्याग करता है तो वह त्याग तामसी है, तथा जो शारीरिक,भय के कारण त्याग किया है तो वह राजस त्याग है। त्याग के लिए अपने अंदर सतोगुण बढ़ाना चाहिए तभी त्याग का लाभ मिलेगा और *मनुष्य के सतोगुणी बनने में गायमाता के गोबर की सबसे बड़ी भूमिका है अर्थात गाय माता का गोबर सतोगुण की खान है।

60वें दिवस पर चुनरी यात्रा राजस्थान के बूंदी एवं झालावाड़ जिले की ओर से*:-

एक वर्षीय गोकृपा कथा के 60 वें दिवस पर राजस्थान के बूंदी जिले की हिंडोली तहसील के पेच की बावड़ी से शौकीन राठौर के परिवार एवं झालावाड़ जिले की पिड़ावा तहसील के खेराना ग्राम के पंच पटेल मांगी लाल दांगी,राम कैलाश दांगी,रामनारायण दांगी, भगवान सिंह, बद्री लाल दांगी,,दौलतराम दांगी,बजरंग लाल दांगी,नानूराम दांगी,एवं शिवम दांगी सहित ग्राम की मातृशक्ति ,युवा एवं प्रबुद्धजन अपने ग्राम की कुशहाली एवं जन कल्याण के लिए सम्पूर्ण ग्राम की ओर से गाजे बाजे के साथ विशाल चुनरी यात्रा ,गो भंडारा एवं छपन्नभोग सामग्री लेकर कामधेनु गो अभयारण्य मालवा परिसर में पधारे और कथा मंच पर पहुंचकर गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर गोमाता का पूजनकर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन, गोपुष्ठि यज्ञ करके यज्ञशाला की परिक्रमा कर उसके बाद सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।

 

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Author: Dhenu News

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